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Wednesday, May 29, 2013

दारू के इक गिलास में



चांद भी महबूबा लगता है,
दारू के इक गिलास में
सारा जग डूबा लगता है
दारू के इक गिलास में।

पतझड़ भी सावन लगता है
दारू के इक गिलास में
नाला भी पावन लगता है
दारू के इक गिलास में।

होश-ओ-हवास में मुझको तू
बे-वफा दिखाई देता है,
खुदा सा तू सच्चा लगता है
दारू के इक गिलास में।

बात-बात पर जिद करता
आंखों में आंसू भर लाता,
दिल छोटा बच्चा लगता है
दारू के इक गिलास में।

दोस्त कंपनी देने से
दिन-रात लगें जब कतराने
तब ‘साला’ अच्छा लगता है
दारू के इक गिलास में।